एकनाथजी - संक्षिप्त जीवनी

जब सम्पूर्ण राष्ट्र बड़े हर्षोल्लास से स्वामी विवेकानन्द की जन्मशताब्दी मनाने में व्यस्त था, तब श्री एकनाथ जी ने उस महान देशभक्त संन्यासी को अपनी सच्ची श्रद्धांजलि देने के लिए “हे हिन्दू राष्ट्र उतिष्ठत ! जाग्रत !!” पुस्तक का संकलन किया जो जनवरी 1963 में प्रकाशित हुई I

माननीय एकनाथजी : जीवन - क्रम

19.11.1914 –  जन्म : टिमत्ळा, जिला – अमरावती, महाराष्ट्र में

1920 –  नागपुर आगमन, प्राथमिक शिक्षा – फडणवीसपुरा विद्यालय से प्राप्त की

1926 –  एक स्वयंसेवक के रूप में राष्ट्रीय स्वयं सेवक से जुड़े

1932 –  न्यु इंग्लिश हाई स्कूल, नागपुर से दसवी कक्षा उत्तीर्ण की

1938 – दर्शनशास्त्र से बी.ए. (ऑनर्स) की परीक्षा उत्तीर्ण की (एम. ए. के समकक्ष)

1938 –  जबलपुर में राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के प्रचारक बने

1946 – महाकौशल और मध्य भारत प्रांत के प्रान्त प्रचारक बने, विधि महाविद्यालय, जबलपुर से विधि स्नातक (एल. एल. बी.) की परीक्षा उत्तीर्ण की

1948 – राष्ट्रीय स्वयं सेवक  पर प्रतिबंध के दौरान उन्होंने भूमिगत होकर, प्रतिबंध हटाने में सरदार पटेल तथा अन्य के बीच मध्यस्थता की

1949 – एक माह तक कारागृह - वास

1950 – पूर्वांचल (बंगाल, उड़ीसा, और असम) के क्षेत्र-प्रचारक के रूप में पूर्वी पाकिस्तान (बांग्लादेश) से आए शरणार्थियों के लिए एक अत्यन्त प्रभावी “वास्तुहारा सहायता समिति” की स्थापना कर उत्कृष्ट सेवा कार्य किया  

1953 – अखिल भारतीय प्रचार प्रमुख

1955 – राष्ट्रीय स्वयं सेवक के सरकार्यवाह (महासचिव)

1962 – अखिल भारतीय बौद्धिक प्रमुख  (राष्ट्रीय स्वयं सेवक)

17.01.1963 – स्वामी विवेकानन्द की जन्मशताब्दी की पूर्व-संध्या पर, उनके ओजस्वी विचारों से ओतप्रोत, "हे हिन्दू राष्ट्र उतिष्ठत ! जाग्रत !!” का संकलन किया

18.08.1963 – विवेकानन्द शिलास्मारक समिति के संगठन सचिव

1972 – ‘‘विवेकानन्द केन्द्र’’ - एक अध्यात्म प्रेरित सेवा संगठन, की स्थापना

1973 – ‘युवा भारती’,  ‘केन्द्र भारती’, ‘विवेकानंद केंद्र पत्रिका’ के संस्थापक संपादक एवं ब्रह्मवादिन के पुनर्जीवक (पुन: जीवन-प्रदाता) संपादक बने

28.05.1975 – विवेकानन्द केन्द्र के महासचिव  

1978 – विवेकानन्द केन्द्र के राष्ट्रीय अध्यक्ष

1982 – विवेकानन्द केन्द्र इण्टरनेशनल के अध्यक्ष

22.08.1982 – निर्वाण - मद्रास (चेन्नै) में

23.08.1982 – दाह-संस्कार, विवेकानन्दपुरम् कन्याकुमारी में

एक सामाजिक कार्यकर्ता के चार उत्कृष्ट और आवश्यक गुण इस पद्य से स्पष्ट है :-

मुक्तसङ्गोऽनहंवादी  धृत्युत्साहसमन्वित: I
सिद्ध्यसिद्ध्योर्निर्विकार: कर्ता सात्त्विक उच्यते II

जो अनासक्त, निरहंकारी, धैर्य और उत्साह से परिपूर्ण तथा सफलता-असफलता में निर्विकार रहता है, वहीं सात्विक कार्यकर्ता कहलाता है I